तुम्हारी निगाहें जब कभी, मेरे चेहरे से बात करती हैं।
महसूस करता हूँ शायद, हमारे दरमियाँ कुछ तो बाक़ी है ।
ये हिचकियाँ जिन्हें आदत थी, बिन-बताये सासों में समाने की।
आज कल यही हिचकियाँ, इज़ाज़त लेकर मेरी सासों में आती है।
हर कदम पर जताना तुम्हारा,
की मुझे मोहब्बत नहीं है तुमसे।
महसूस करता हूँ शायद, हमारे दरमियाँ कुछ तो बाक़ी है ।
ये हिचकियाँ जिन्हें आदत थी, बिन-बताये सासों में समाने की।
आज कल यही हिचकियाँ, इज़ाज़त लेकर मेरी सासों में आती है।
हर कदम पर जताना तुम्हारा,
की मुझे मोहब्बत नहीं है तुमसे।
सच मानो यूँ लगता है एक हक़,
जो था तुम पर छिन गया है मुझसे।
तुम्हारे पास ठहेरने का नशा है मुझपर।
इक तुम ख़फ़ा क्या हुई, ये उतर रहा है॥
मेरा नाम सहूलियत से पुकारना तेरा,
मानो कोई अपना अब मेरा हो रहा है।
तेरे होंठ है की मंदिर के पवित्र कपाट।
छू लूं लबों से और जन्नत मिल जाये॥
मेरा साथ तुम्हारी चाहत नहीं है, मालूम है,
कह दिया जिंदगी से, अब कोई न आये।
तेरा एक पल भी मेरी आँखों से ओझल होना,
ऐसा है जैसे आँखों से रौशनी का खो जाना।
तेरी एक झलक कई अरमानों को हवा देती है।
विश्वास न हो, तो बादलों से पूछकर देख लेना॥
तुम मेरे करीब रहो या दूर रहो।
मुस्कान सदा तुम्हारी हमराही हो॥
सफलताओं के आँचल में तुम पलो ,
और विशेषता तुम्हारी अँगड़ाई हो।
यादों की नजदीकियां तेरी भाती हैं मुझे,चाहती हैं।
यही है शायद 'कुछ' जो हमारे दरमियाँ बाकी है॥
तुम्हारे पास ठहेरने का नशा है मुझपर।
इक तुम ख़फ़ा क्या हुई, ये उतर रहा है॥
मेरा नाम सहूलियत से पुकारना तेरा,
मानो कोई अपना अब मेरा हो रहा है।
तेरे होंठ है की मंदिर के पवित्र कपाट।
छू लूं लबों से और जन्नत मिल जाये॥
मेरा साथ तुम्हारी चाहत नहीं है, मालूम है,
कह दिया जिंदगी से, अब कोई न आये।
तेरा एक पल भी मेरी आँखों से ओझल होना,
ऐसा है जैसे आँखों से रौशनी का खो जाना।
तेरी एक झलक कई अरमानों को हवा देती है।
विश्वास न हो, तो बादलों से पूछकर देख लेना॥
तुम मेरे करीब रहो या दूर रहो।
मुस्कान सदा तुम्हारी हमराही हो॥
सफलताओं के आँचल में तुम पलो ,
और विशेषता तुम्हारी अँगड़ाई हो।
यादों की नजदीकियां तेरी भाती हैं मुझे,चाहती हैं।
यही है शायद 'कुछ' जो हमारे दरमियाँ बाकी है॥
.............प्रवीण तिवारी 'रौनक'
No comments:
Post a Comment