Wednesday, August 31, 2011

खामोशियों ने घर कर लिया...

''तुम्हारी तरह जिंदगी भी अब बोलती नहीं
बेचैनियों ने मुझमें बसर कर लिया
चाहा बहुत तुमसे बात करना मगर ,
खामोशियों ने घर को ही मेरे घर कर लिया॥ ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'

Monday, August 29, 2011

अनमोल मोती है माँ...

''इस धरा पर एक अनमोल मोती है माँ ।
मोह, त्याग, संवेदना की ज्योति है माँ
ये वो दिया है जिसे हवाएं बुझा सकी,
उम्मीद, इंतज़ार, चिंताओं, को संजोंती है माँ । ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'

Sunday, August 28, 2011

एक कहानी माँ के आँचल की...

माँ का आँचल ममता का सागर
माँ का आँचल सर्दी की चादर॥
माँ का आँचल पीपल की छाओं।
माँ का आँचल नानी का गाँव॥
माँ का आँचल सपनो की डोली।
माँ का आँचल नींद की गोली॥
माँ का आँचल बच्चे का खिलौना
माँ का आँचल मखमल का बिछौना॥
माँ का आँचल बच्चे की पालकी।
माँ का आँचल जीवन की झांकी॥
माँ का आँचल छुपकर रोना।
माँ का आँचल रात भर सोना॥
माँ का आँचल फूलों का उपवन।
माँ का आँचल संदल का वन॥
माँ का आँचल वेदों की महिमा।
माँ का आँचल चेहरे की लालिमा॥
माँ का आँचल सब कुछ कहना।
माँ का आँचल बेटी का गहना॥
माँ का आँचल परियों की कहानी।
माँ का आँचल बेटे की जवानी॥
माँ का आँचल जीवन की ढाल।
माँ का आँचल दुष्टों का काल॥
माँ का आँचल आश की किरण।
माँ का आँचल तन मन अर्पण॥
माँ का आँचल मुस्किल का हल।
माँ का आँचल गंगा का जल॥
माँ का आँचल ब्रह्माण्ड सा प्यारा।
माँ का आँचल दूध की धारा॥
माँ का आँचल होठों की मुस्कान।
माँ का आँचल जन्नत का नाम॥
माँ का आँचल बेटी का कन्यादान।
माँ का आँचल इश्वर का वरदान॥
माँ के आँचल की यही कहानी।
माँ के आँचल में दुनिया सारी.............................प्रवीण तिवारी 'रौनक'

''मैंने कुछ कहा नहीं लेकिन माँ समझ गयी
थकावट भरे चेहरे पर मेरे उसकी नज़र गयी॥
हाथों में लेकर आँचल को जो पोछा माँ ने चेहरे को,
मरते हुए शख्स को जैसे संजीवनी मिल गयी।''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'

Friday, August 5, 2011

ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...

ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं
इन अश्को का कहीं अब किनारा नहीं
चले गए तुम मुझे इस कदर छोड़ कर
जैसे जाते है लोग सूना घर छोड़ कर
तेरे जैसा कोई अब हमारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...

घूमू फिरू या आऊं जाऊं कहीं
नजरे मेरी तुझे तलाशा करे
घर आने में गर तू जरा देर कर दे
मन में बेचैनियों का सिलसिला रहे
तेरी यादों के साथ मैं सोता रहा
एसी रातों का कहीं अब सबेरा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...

तेरे पास हूँ बैठा जब मैं कभी
कहीं और जाने की इच्छा हो
बना लूं तकिया तेरी गोद को
मुझसे अब थोड़ी प्रतीक्षा हो
चारों दिशाओं में खोजा बहुत
तेरे जैसा कोई अब सहारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...

तेरी बातों से सुकून हर वक़्त मिला है मुझे
समझती हो अपना ये अहसास कराती रही
दूर होने का जब कभी तुमने बहाना लिया
तेरी यही आदतें मुझे प्रतिदिन सताती रही
तुम जो रूठे रहे मुझसे कभी
दिल को हमदम मेरे ये गवारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...

तुम जो गुजरे कभी यूँ बगल से मेरे
धडकनों को जैसे गति मिल गयी
फेरकर मुह को मुस्कुराये जो तुम
सुखी ज़मी को जैसे नमी मिल गयी
देखकर मुझे तुमने देखा नहीं
तुम्हारी आँखों का कभी मैं सितारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...

तुम खुश हुए तो हम खुश रहे
उदास जो हुए, फिजाओं में उदासी रही
फिर तेरे चहकने का आलम यूँ हुआ
की कोयलों को शर्म आती रही
तुम्हारे चहरे की 'रौनक' बयाँ क्या करू
जग में ऐसा कहीं अब नजारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं.......................प्रवीण तिवारी 'रौनक'

''तुम्हारी मोहब्बत ने चलना सिखा दिया मुझे,
थक गये थे हम रफ़्तार का पता पूछते-पूछते।
तेरे आने की आहट आज भी मैं पहचान तो लूं,
पर डरता हूँ, तुम ठहर न जाओ कहीं चलते-चलते। ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'