तुमसे जब कभी मुलाकात करनी होती है मुझे,
तेरे साथ बिताये लम्हों को याद कर लेते हैं।
तुमसे जब कभी बात करनी होती है मुझे,
तेरी तस्वीर को अक्सर हम पास बुला लेते हैं।
तुमसे जब कभी कोई शिकायत करनी होती है मुझे,
खुद से ही अपने जज्बात बयाँ कर लेते हैं।
तुम्हारे साथ जब कभी कुछ पल बिताना होता है मुझे,
अपने खवाबों में जाते है और तेरे साथ हो लेते हैं।..............................प्रवीण तिवारी 'रौनक'
Thursday, September 29, 2011
Tuesday, September 27, 2011
अनदेखियों ने.....
''उसकी अनदेखियों ने कोरा कागज़ कर दिया मुझे।
हर रोज नए प्रश्न लिखे जाते हैं मुझ पर॥ ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
हर रोज नए प्रश्न लिखे जाते हैं मुझ पर॥ ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
Wednesday, September 21, 2011
एक खूबसूरत शाम है दोस्ती...
''जीवन की एक खूबसूरत शाम है दोस्ती,
हो कैसा सफ़र गुजर जाएगा।
दोस्त हैं करीब तो महसूस करतें हैं ये,
कितनी भी हो मुश्किल हल नज़र आएगा।''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
हो कैसा सफ़र गुजर जाएगा।
दोस्त हैं करीब तो महसूस करतें हैं ये,
कितनी भी हो मुश्किल हल नज़र आएगा।''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
Monday, September 12, 2011
हमारे दरमियाँ कुछ तो बाकी है...
तुम्हारी निगाहें जब कभी, मेरे चेहरे से बात करती हैं।
महसूस करता हूँ शायद, हमारे दरमियाँ कुछ तो बाक़ी है ।
ये हिचकियाँ जिन्हें आदत थी, बिन-बताये सासों में समाने की।
आज कल यही हिचकियाँ, इज़ाज़त लेकर मेरी सासों में आती है।
हर कदम पर जताना तुम्हारा,
की मुझे मोहब्बत नहीं है तुमसे।
महसूस करता हूँ शायद, हमारे दरमियाँ कुछ तो बाक़ी है ।
ये हिचकियाँ जिन्हें आदत थी, बिन-बताये सासों में समाने की।
आज कल यही हिचकियाँ, इज़ाज़त लेकर मेरी सासों में आती है।
हर कदम पर जताना तुम्हारा,
की मुझे मोहब्बत नहीं है तुमसे।
सच मानो यूँ लगता है एक हक़,
जो था तुम पर छिन गया है मुझसे।
तुम्हारे पास ठहेरने का नशा है मुझपर।
इक तुम ख़फ़ा क्या हुई, ये उतर रहा है॥
मेरा नाम सहूलियत से पुकारना तेरा,
मानो कोई अपना अब मेरा हो रहा है।
तेरे होंठ है की मंदिर के पवित्र कपाट।
छू लूं लबों से और जन्नत मिल जाये॥
मेरा साथ तुम्हारी चाहत नहीं है, मालूम है,
कह दिया जिंदगी से, अब कोई न आये।
तेरा एक पल भी मेरी आँखों से ओझल होना,
ऐसा है जैसे आँखों से रौशनी का खो जाना।
तेरी एक झलक कई अरमानों को हवा देती है।
विश्वास न हो, तो बादलों से पूछकर देख लेना॥
तुम मेरे करीब रहो या दूर रहो।
मुस्कान सदा तुम्हारी हमराही हो॥
सफलताओं के आँचल में तुम पलो ,
और विशेषता तुम्हारी अँगड़ाई हो।
यादों की नजदीकियां तेरी भाती हैं मुझे,चाहती हैं।
यही है शायद 'कुछ' जो हमारे दरमियाँ बाकी है॥
तुम्हारे पास ठहेरने का नशा है मुझपर।
इक तुम ख़फ़ा क्या हुई, ये उतर रहा है॥
मेरा नाम सहूलियत से पुकारना तेरा,
मानो कोई अपना अब मेरा हो रहा है।
तेरे होंठ है की मंदिर के पवित्र कपाट।
छू लूं लबों से और जन्नत मिल जाये॥
मेरा साथ तुम्हारी चाहत नहीं है, मालूम है,
कह दिया जिंदगी से, अब कोई न आये।
तेरा एक पल भी मेरी आँखों से ओझल होना,
ऐसा है जैसे आँखों से रौशनी का खो जाना।
तेरी एक झलक कई अरमानों को हवा देती है।
विश्वास न हो, तो बादलों से पूछकर देख लेना॥
तुम मेरे करीब रहो या दूर रहो।
मुस्कान सदा तुम्हारी हमराही हो॥
सफलताओं के आँचल में तुम पलो ,
और विशेषता तुम्हारी अँगड़ाई हो।
यादों की नजदीकियां तेरी भाती हैं मुझे,चाहती हैं।
यही है शायद 'कुछ' जो हमारे दरमियाँ बाकी है॥
.............प्रवीण तिवारी 'रौनक'
Thursday, September 8, 2011
हम बच्चे हो गए...
''मेरी माँ की मुस्कराहटों पर कई सजदे हो गए।
तेरे आंचल से खेलते-खेलते माँ हम बच्चे हो गए॥
दुश्मनों को पलकों पर बैठाकर रखना चाहिए,
इन बातों को माँ की सोचते ही, हम बड़े हो गए। ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
तेरे आंचल से खेलते-खेलते माँ हम बच्चे हो गए॥
दुश्मनों को पलकों पर बैठाकर रखना चाहिए,
इन बातों को माँ की सोचते ही, हम बड़े हो गए। ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
प्यार की अजमाइश नहीं की...
''मिल जाओ तुम -हमें,खुदा से ये फ़रमाइश नहीं की।
कुछ पल ही सही चाहो, यही खाव्हिश थी मेरी॥
कसम खाकर कहते हैं,आपके होठों के तबस्सुम की,
कभी हमने -अपने प्यार की अजमाइश नही की।''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
कुछ पल ही सही चाहो, यही खाव्हिश थी मेरी॥
कसम खाकर कहते हैं,आपके होठों के तबस्सुम की,
कभी हमने -अपने प्यार की अजमाइश नही की।''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
Tuesday, September 6, 2011
दिल के आँगन में...
''दिल के आँगन में हमने एक घरोंदा बना लिया।
आपकी खुबसूरत यादों को बस उसमे सजा लिया॥
चुरा न ले मुझसे कोई इन बेशकीमती हीरों को,
इस डर से हमने दरीचे पर एक ताला लगा दिया। ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
आपकी खुबसूरत यादों को बस उसमे सजा लिया॥
चुरा न ले मुझसे कोई इन बेशकीमती हीरों को,
इस डर से हमने दरीचे पर एक ताला लगा दिया। ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
Friday, September 2, 2011
तेरी यादों को...
''तमन्नाओं को तकिया,
एहसासों को बिस्तर बनाकर सो गए।
हम तो कल शब तुम्हारी यादों को
चादर बनाकर सो गए। ''
चादर बनाकर सो गए। ''
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
Thursday, September 1, 2011
अपनी प्यास बुझा लेते हैं...
"गमों की शहनाई को मधुर साज बना लेते हैं।
माथे पर आये पसीने को अपना ताज बना लेते हैं॥
वो लोग और होंगे जो दरिया की आस में रहते हैं,
हम वो हैं जो चंद कतरों से अपनी प्यास बुझा लेते हैं।"
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
माथे पर आये पसीने को अपना ताज बना लेते हैं॥
वो लोग और होंगे जो दरिया की आस में रहते हैं,
हम वो हैं जो चंद कतरों से अपनी प्यास बुझा लेते हैं।"
- प्रवीण तिवारी 'रौनक'
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