मां आज तुम फिर गांव को चली जाओगी।
तुम्हारें बिन मैं एक पल भी न रह पाउंगा।
लगता है मां आज मैं भूखा ही रह जाउंगा।।
तुम बिन मां ये घर काटने को दौड़ता है।
तनहा सा रहता हूं, हर दिन अखरता है।।
बिन तेरी आवाज मैं कैसे सुबह उठ पाउंगा।
लगता है मां आज मैं भूखा ही रह जाउंगा।।
सुबह ‘रौनक’ इक आवाज सी आएगी।
स्नेह भरी खाने की थाली पड़ोस से आएगी।।
तेरे बिन मां मैं एक निवाला भी न खा पाउगां।
लगता है मां आज मैं भूखा ही रह जाउंगा।।
तेरे न होने पर मौसी का खूब दुलार मिलता है।
सुबह हो या हो शाम स्वादिष्ट आहार मिलता है।।
उनके इस कर्ज को मां मैं कैसे चुका पाउंगा।
लगता है मां आज मैं भूखा ही रह जाउंगा।।
तुम बिन मां ये जिंदगी मजबूरी लगती है।
तेरे हाथों से सूखी रोटी भी मां पूरी लगती है।।
उन हाथों के एक निवाले को मैं तरस जाउंगा
लगता है मां आज मैं भूखा ही रह जाउंगा।
तुम्हें याद करके मैं बहुत रोता हंू।
तुम बिन मां मैं कहां तनिक भी सोता हूं।।
तेरी रातों की लोरी को सोचकर ही रह जाउंगा।।
लगता है मां आज मैं भूखा ही रह जाउंगा।।
तुम जैसा मां कोई भी अपना नहीं है।
तुम नहीं हो मां तो कोई सपना नहीं है।।
कदम अपने लक्ष्य की ओर कैसे बढ़ा पाउंगा।
लगता है मां आज मैं भूखा ही रह जाउंगा।।
-प्रवीण तिवारी ‘रौनक’
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