ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं
इन अश्को का कहीं अब किनारा नहीं
चले गए तुम मुझे इस कदर छोड़ कर
जैसे जाते है लोग सूना घर छोड़ कर
तेरे जैसा कोई अब हमारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
घूमू फिरू या आऊं जाऊं कहीं
नजरे मेरी तुझे तलाशा करे
घर आने में गर तू जरा देर कर दे
मन में बेचैनियों का सिलसिला रहे
तेरी यादों के साथ मैं सोता रहा
एसी रातों का कहीं अब सबेरा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तेरे पास हूँ बैठा जब मैं कभी
कहीं और जाने की इच्छा न हो
बना लूं तकिया तेरी गोद को
मुझसे अब थोड़ी प्रतीक्षा न हो
चारों दिशाओं में खोजा बहुत
तेरे जैसा कोई अब सहारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तेरी बातों से सुकून हर वक़्त मिला है मुझे
समझती हो अपना ये अहसास कराती रही
दूर होने का जब कभी तुमने बहाना लिया
तेरी यही आदतें मुझे प्रतिदिन सताती रही
तुम जो रूठे रहे मुझसे कभी
दिल को हमदम मेरे ये गवारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तुम जो गुजरे कभी यूँ बगल से मेरे
धडकनों को जैसे गति मिल गयी
फेरकर मुह को मुस्कुराये जो तुम
सुखी ज़मी को जैसे नमी मिल गयी
देखकर मुझे तुमने देखा नहीं
तुम्हारी आँखों का कभी मैं सितारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तुम खुश हुए तो हम खुश रहे
उदास जो हुए, फिजाओं में उदासी रही
फिर तेरे चहकने का आलम यूँ हुआ
की कोयलों को शर्म आती रही
तुम्हारे चहरे की 'रौनक' बयाँ क्या करू
जग में ऐसा कहीं अब नजारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं.......................प्रवीण तिवारी 'रौनक'
इन अश्को का कहीं अब किनारा नहीं
चले गए तुम मुझे इस कदर छोड़ कर
जैसे जाते है लोग सूना घर छोड़ कर
तेरे जैसा कोई अब हमारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
घूमू फिरू या आऊं जाऊं कहीं
नजरे मेरी तुझे तलाशा करे
घर आने में गर तू जरा देर कर दे
मन में बेचैनियों का सिलसिला रहे
तेरी यादों के साथ मैं सोता रहा
एसी रातों का कहीं अब सबेरा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तेरे पास हूँ बैठा जब मैं कभी
कहीं और जाने की इच्छा न हो
बना लूं तकिया तेरी गोद को
मुझसे अब थोड़ी प्रतीक्षा न हो
चारों दिशाओं में खोजा बहुत
तेरे जैसा कोई अब सहारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तेरी बातों से सुकून हर वक़्त मिला है मुझे
समझती हो अपना ये अहसास कराती रही
दूर होने का जब कभी तुमने बहाना लिया
तेरी यही आदतें मुझे प्रतिदिन सताती रही
तुम जो रूठे रहे मुझसे कभी
दिल को हमदम मेरे ये गवारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तुम जो गुजरे कभी यूँ बगल से मेरे
धडकनों को जैसे गति मिल गयी
फेरकर मुह को मुस्कुराये जो तुम
सुखी ज़मी को जैसे नमी मिल गयी
देखकर मुझे तुमने देखा नहीं
तुम्हारी आँखों का कभी मैं सितारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं...
तुम खुश हुए तो हम खुश रहे
उदास जो हुए, फिजाओं में उदासी रही
फिर तेरे चहकने का आलम यूँ हुआ
की कोयलों को शर्म आती रही
तुम्हारे चहरे की 'रौनक' बयाँ क्या करू
जग में ऐसा कहीं अब नजारा नहीं
ये माना की मै अब तुम्हारा नहीं.......................प्रवीण तिवारी 'रौनक'
थक गये थे हम रफ़्तार का पता पूछते-पूछते।
तेरे आने की आहट आज भी मैं पहचान तो लूं,
पर डरता हूँ, तुम ठहर न जाओ कहीं चलते-चलते। ''
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