Sunday, December 7, 2014

कोई भूल पाता है...

कोई   भूल  पाता  है  किसी  को भुलाने से। 
ये   बात   पूछो   तुम   किसी   दिवाने   से।
 

मेरी खामोशियों पर यूं न उंगलियां उठाओ,
मैं   तन्हा   हूं   पिछले   कई   जमाने   से।
 

कल   रात   मुझे  नींद  बहुत  अच्छी  आई,
किसी    रूठे    हुए    के    मान    जाने    से।

तुम  पर  शक  की  कोई  गुंजाईश न रहेगी,
तुम   पास   तो   आओ   किसी   बहाने   से।
 

तबीयत   मेरी   फिर   हरी   सी   हो   गयी,
सिर्फ    तेरे    एक    बार    मुस्कुराने    से।
 

तेरे   गम   को   मैंने   हावी  न  होने  दिया,
जाकर   मैं   लौट   आया   हूं   मैखाने   से।


खुदा    महफूज    रखे    ऐसे    लोगो    को,
जो   हँस   पड़ते  हैं  किसी  के  हँसाने  से।
  
तुझे   खोने   का   दर्द   आज  भी  जिंदा  है,
खुदा   बचाए   मुझे   लोगो   के   ताने  से।

इत्र   की   तरह   वो   मुझमें   महकता  है,
एक  बार  छू  लिया  था  जिसे अंजाने से।
 

-प्रवीण तिवारी ‘रौनक’

Thursday, November 20, 2014

बहुत गुमान है तुम्हें  अपनी आँखों पर। 
जा हमने आज से पीना ही छोड़ दिया। 
-प्रवीण तिवारी 'रौनक'
तुम्हारी मोहब्बत मिले तो ख़ुशी भी होगी और ये ग़म भी।
मेरे   ज़ेहन   से   ग़ज़लों   का   हुनर   चला   जायेगा।।
-प्रवीण तिवारी 'रौनक'

Tuesday, June 10, 2014

जीने का बहाना नहीं आया.....

ख्वाबों को हकीकत में मिलाना नहीं आया।
मुझे  जिंदगी  जीने  का  बहाना नहीं आया।

सरकते   न  आँसू  आँखों  की दहलीज से।
तेरी यादों को ठीक से सहलाना नहीं आया।

रात   सूना   रहा   मेरी  उम्मीदों  का आँगन।
आज  कोई  ख्वाब  तेरा सुहाना नहीं आया।

रूठी  धड़कनो  की  हसरतें  हो  जाती पूरी।
तुम्हें  सलीके  से  गले  लगाना  नहीं  आया।

थामा  ही  नहीं  तुमने  इशारों  की  डोर  को।
मुझे    ही   कोई   बात  बताना  नहीं  आया।

तुम   न   जाते   तो भला  और  क्या  करते।
मुझे   ही   साथ   तेरा  निभाना  नहीं  आया।

झूठी  तसल्ली  ही  सही  कुछ  तो  मिलता।
तक़दीर     तुझे     बहलाना    नहीं    आया।

हम   सोए   ऐसा   की   फिर   उठे   ही नहीं।
माँ  की  तरह  किसी को जगाना नहीं आया।
-प्रवीण तिवारी 'रौनक'

Sunday, March 30, 2014

तेरे हाथों को छुए ...

''तेरे हाथों को छुए ज़माने हो गए।
मैं तेरा था कभी,ये किस्से अब पुराने हो गये॥
हवाओं की तरह तुमने रुख मोड़ लिया है मुझसे,
टूट कर ऐसे बिखरे की फ़िर खाने खाने हो गए। "
-प्रवीण तिवारी 'रौनक'