Thursday, June 28, 2012
एक अंजान कांधों पर तुम्हारा सर होगा...
वो एक बात जो मेरी आंखो से नींदे चुरा लेती है।
कि एक दिन वो पल भी आएगा।
जब एक अजनबी तुम्हारी मांग सजाएगा।।
फिर एक गैर की बाँहों में मेरा मुकद्दर होगा ।
और एक अंजान कांधों पर तुम्हारा सर होगा।।
तुम अमानत किसी और की हो जाओगी।
न समझती हो मुझे न ही कभी चाहोगी।।
ऐसे गुजरेगा वक्त, कि सारा आलम बेखबर होगा।
और एक अंजान कांधो पर तुम्हारा सर होगा।।
तेरे लौट आने की फिर कोई गंुजाइश न रहेगी।
की जैसे जिंदगी में तब कोई ख्वाहिश न रहेगी।।
उदासी चेहरे पर इन आंखों में समदंर होगा।
और एक अंजान कांधों पर तुम्हारा सर होगा।। -
प्रवीण तिवारी ‘रौनक’
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dhanyavad yashoda ji..................
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन भावमय करती रचना..
ReplyDelete:-)
kisi apne ka apne se door jaane ka sapna bhi bahut kasm-kash bhar deta hai man mein ..
ReplyDeletemanobhon ki sundar prastuti ..
bhut bhut dhanyavad kavita ji.........
ReplyDeletesada ji tahe dil se shukriya....
ReplyDeletereena ji...........dhanyavad
ReplyDeleteयशवंत जी बहुत धन्यवाद................जानकारी देने के लिए विशेष रूप से.
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