वो एक बात जो मेरी आंखो से नींदे चुरा लेती है।
कि एक दिन वो पल भी आएगा।
जब एक अजनबी तुम्हारी मांग सजाएगा।।
फिर एक गैर की बाँहों में मेरा मुकद्दर होगा ।
और एक अंजान कांधों पर तुम्हारा सर होगा।।
तुम अमानत किसी और की हो जाओगी।
न समझती हो मुझे न ही कभी चाहोगी।।
ऐसे गुजरेगा वक्त, कि सारा आलम बेखबर होगा।
और एक अंजान कांधो पर तुम्हारा सर होगा।।
तेरे लौट आने की फिर कोई गंुजाइश न रहेगी।
की जैसे जिंदगी में तब कोई ख्वाहिश न रहेगी।।
उदासी चेहरे पर इन आंखों में समदंर होगा।
और एक अंजान कांधों पर तुम्हारा सर होगा।। -
प्रवीण तिवारी ‘रौनक’